BY: प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध
हे सदा शिव शंभु शंकर, दुखहरण मंगल करण
सुख, विभव, आनंद-दायक, शांतिप्रद प्रभु तवचरण।।
कामना तव कृपा की ले नाथ हम आये शरण
आशुतोष अपारदानी कीजिये सुख दुख हरण।।1।।
हृदय की सब जानते हो भक्त के, भगवान तुम
तुम्हीं संरक्षक जगत के प्राणियों के प्राण तुम।।
विधि न मालूम अर्चना की भावना के हैं सुमन
नेह आलोकित हृदय है, धवल हिम सा शुद्ध मन।।2।।
तमावृत हर पथ जगत का मोह के अंधियार से
बढ़ रहे हैं कष्ट नित नव स्वार्थ के विस्तार से।।
है भयावह रात काली, कहीं न दिखती है किरण
तव कृपा की कामना ले हैं बिछे पथ में नयन।।3।।
दीजिये वर ‘’कल’’ बने सत्यं शिवं शुभ सुंदरम
मन में करूणा का उदय हो, क्लेश, प्रभु हो जायें कम।।
अश्रु- जल कर सके उठती द्वेष- लपटों का शमन
विनत तव चरणों में शंकर हमारा शत शत नमन।।4।।