BY: नवीन श्रीवास्तव
ध्वंस का विध्वंश का मैं
मैं विप्लवी राग सुनाता हूं।
सुनकर हो कंपित ह्रदय
मैं वह हुंकार लगाता हूं।
अँधेरे का छाती चीर ले
लक्ष्य संधान का ऐसा तीर।
चढ़े जो कपाल तो..
हो कंप भी भूकम्प भी।
गिरे मरे गद्दार भी..
कलेजे को फाड़ दे
विजय का झंडा गाड़ दे।
हर घात करूँ खंड-खंड
मैं चंड भी प्रचंड भी।
यशोगान के रश्म का
मैं शहनाई बजाता हूं।
ध्वंस का विध्वंस का
मैं विप्लवी राग सुनाता हूं।