चर्चाकार … विवेक रंजन श्रीवास्तव , भोपाल
- लेखक : कैलाश मण्डलेकर,
प्रकाशक: शिवना प्रकाशन, सीहोर(मप्र),
मूल्य: 200 रुपये
शिवना प्रकाशन सीहोर , छोटे शहर से बड़ा साहित्यिक काम करता संस्थान है . जो अंतर्राष्ट्रीय स्तार पर पुस्तक एवं पत्रिका प्रकाशन के साथ ही साहित्यिक गोष्ठियों तथा सम्मान के बहुमुखी आयोजन कर अपनी पहचान दर्ज कराता रहा है . यह सब शिवना के संचालक साहित्यकार तथा विचारक पंकज सुबीर की व्यैक्तिक अभिरुचियों तथा प्रयासों का सुपरिणाम है .
हाल ही शिवना ने सुप्रसिद्ध , साहित्यिक सम्मानो से देश भर में पुरस्कृत खंडवा के प्रसिद्ध व्यंग्य कर्मी श्री कैलाश मंडलेकर के हास्य व्यंग्य संग्रह धापू पनाला,का प्रकाशन कर अपनी पुस्तक सूची में मनोरंजक विविधता जोड़ी है . खुली सड़क पर , सर्किट हाउस पर लटका चांद , एक अधूरी प्रेम कहानी का दुखांत , लेकिन जाँच जारी है , बाबाओ के देश में जैसी व्यंग्य पुस्तको से कैलाश जी बेहद शांत , शालीन तरीके से व्यंग्य जगत में अपनी लम्बी पैठ बनाते चले आ रहे हैं . खण्डवा की धरती से जुड़े अनेक साहित्यकार हिन्दी के राष्ट्रीय क्षितिज पर परचम लहराते दिखते हैं , ललित निबंध में डा श्रीराम परिहार , कहानी में स्व.जगन्नाथप्रसाद चौबे ‘वनमाली’ , और भी अनेको नामो की उत्कृष्ट परंपरा में कैलाश जी का नाम सुस्थापित हो चुका है .
व्यंग्य की मारक क्षमता के साथ हास्य की मार करना एक बड़ी कला है और इस कला के दर्शन करने हों तो यह किताब जरूर पढ़िये . मजेदार लेखों का संग्रह है . कालोनी के दंत चिुकित्सक , बिगड़ा हुआ कूलर और एक अदद ठेलेवाले की तलाश , एक ठहरी हुई बारात , धापू पनाला में वसंत की अगवानी , रेन कोट पहनकर नहाने के निहितार्थ , पकौड़ा पालिटिक्स , एंटी रोमियो स्क्वाड और आशिक का गिरेबान ,उत्सव के पंडालों में चंदा उगाही की रोशनी, … जैसी कुल जमा बयालीस रचनायें अपने लम्बे शीर्षको में ही पाठको को आकर्षित करने के लिये काफी कुछ हिंट देती हैं . चर्चित फिल्मी गीतों के मुखड़ों को को भी कैलाश जी व्यंग्य के रूपकों के रूप में ले उड़े हैं . सुन दर्द भरे मेरे नाले , जिस गली में तेरा घर न हो बालमा , सिलि सिलि बिरहा की रात , ऐसी ही हास्य रंजक रचनायें हैं .अपने व्यंग्य लेखो के बीच बीच वे कविताओ , चौपाईयों , मुहावरों , लोकोक्तियो के प्रयोग से पाठको को बांधे रखते हैं . उनका संस्कृत अध्ययन परिपक्व है , वे मेघदूत से प्रासंगिक कथा भी अपने व्यंग्य में कोट करते दिखते हैं .
कुछ उदाहरण उधृत करना प्रासंगिक होगा जिससे मेरे पाठक समीक्षा पढ़कर किताब मंगवाने के लिये प्रेरित होंगे …
” दांत की बीमारियों के विशेषज्ञ बढ़ते जा रहे हैं … आगे चलकर हर दांत का अलग विशेषज्ञ होगा …..”
” कई बार कूलर इस दौर के नेताओ की तरह धोखाधड़ी करते नजर आते हैं …”
“खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिये जरूरी नही कि खेरती ही की जाये , खेत को प्लाट काटकर कालोनी भी बनाई जा सकती है “
” लड़के लोग रात के बारह बजे तक प्रेम करने के इरादे से सड़क पर आवारा भटका करते थे “

डा ज्ञान चतुर्वेदी ने किताब की भूमिका लिखी है , उन्होंने संग्रह के व्यंग्य लेखों में ग्रामीण परिवेश और भाषा की जीवंतता महसूस की है . पुस्तक का मुद्रण त्रुटि रहित , प्रस्तुति स्तरीय है . कैलाश जी से पाठको को बहुत कुछ निरंतर मिल रहा है , बस अखबार , पत्र पत्रिकायें पढ़ते रहिये और उन्हें सोशल मीडीया पर फालो कीजीये .