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जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी पर सुप्रीम कोर्ट का दूरगामी परिणाम वाला अहम फैसला

Niharika Shrivastava by Niharika Shrivastava
January 28, 2023
in सम्पादकीय
जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी पर सुप्रीम कोर्ट का दूरगामी परिणाम वाला अहम फैसला
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सार्वजनिक पदों पर बैठे सम्माननीयों को अभिव्यक्ति की आजादी के साथ संविधान के आर्टिकल 19 ( 2 ) प्रतिबंध को रेखांकित करना समय की मांग एडवोकेट किशन भावनानी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए संविधान की आवश्यकता पड़ती है संविधान,कानूनों का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है,जो सरकार की मूल संरचना और इसके कार्यों को निर्धारित करता है, जो सरकार के अंगों तथा नागरिकों के आधारभूत अधिकारों को परिभाषित तथा सीमांकित करता है ।

भारत में भी संविधान पारित 29 अगस्त 1947 को बी.एन. राव द्वारा तैयार किए गए संविधान के प्रारूप पर विचार विमर्श करने के लिए डॉ.भीमराव आंबेडकर की अध्यक्षता में प्रारूप समिति का गठन किया गया । 21 फरवरी 1948 को समिति ने अपनी रिपोर्ट संविधान सभा में पेश की पहले और दूसरे वाचन के बाद 7,635 संशोधन पेश किए गए, जिनमें से 2,437 को स्वीकार कर लिया गया । तीसरा वाचन 14-26 नवंबर 1949 को पूरा हुआ और संविधान सभा द्वारा संविधान को पारित कर दिया गया ।
साथियों हम अधिकारों को लेकर बहुत सतर्क,सजग और चौकस रहते हैं । संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों की बात आते ही हमारा लहजा शिकायती हो जाता है । सही मुंह और मूड को बुरा सा बनाकर सरकारों और संवैधानिक संस्थाओं पर तोहमत लगाने लगते हैं । हमें यह नहीं मिल रहा है हमें वो हासिल नहीं हो रहा है । हमें इसकी आजादी चाहिए हमें उसकी आजादी चाहिए । बहुत खूब दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक भारत देश के नागरिकों का यह जोश और जज्बा किसी को भी उनकी जागरूकता की डिग्री पर सोचने को विवश कर सकता है ।

सोच का दूसरा पहलू भी देखिए जिस संविधान ने हमें मौलिक अधिकारों को उपहार के रूप में नवाजा है उसी ने कर्तव्यों के दायित्वबोध की टोकरी का बोझ और आर्टिकल 19 ( 2 ) भी सिर पर लाद दिया है, जिसकी तरफ हमारा ध्यान शायद कम जाता है । अगर हम आर्टिकल 19 के मौलिक अधिकार दिए हैं तो आर्टिकल 19 ( 2 ) के अंतर्गत सम्मेलन के इस अधिकार को निर्बंधित भी किया जा सकता है । इस अधिकार पर प्रतिबंध निम्नांकित आधारों पर किया जा सकता है । किसी भी नागरिक को ऐसी सभा या सम्मेलन आयोजित करने की स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती जिससे लोग शांति भंग हो अथवा देश को प्रभुता एवं अखंडता या लोक व्यवस्था संकट में पड़ जाए । चूंकि दिनांक 3 जनवरी 2023 को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने डब्ल्यूपी ( सी ) 113/2016 कौशल किशोर बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में पांच जजों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी पर संविधान के अनुच्छेद 19 ( 2 ) में दी गई शर्तों के अलावा अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता ।

इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के आधार पर इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे कि जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के दूरगामी परिणाम वाला फैसला तथा संविधान के आर्टिकल 19 ( 2 ) अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध है को रेखांकित करना समय की मांग है साथियों बात अगर हम दिनांक 3 जनवरी 2023 को आए सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ में पारित फैसले की करें तो , पीठ ने 411 के बहुमत से फैसला सुनाया है कि मंत्रियों के बयानों के लिए सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है । पीठ ने जिन प्रश्नों पर विचार किया गया उनमें से एक यह था कि क्या राज्य के किसी भी मामले या के सरकार की सुरक्षा के लिए मंत्री द्वारा दिए गए बयान को विशेष रूप से सामूहिक जिम्मेदारों के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है ? सवाल का जवाब देते हुए जस्टिस एस अब्दुल नजीर जस्टिस बीआर गवई , जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन के बहुमत ने कहा है ।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक याचिका में सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों के लिए बोलने की आजादी पर गाइडलाइन बनाने की मांग की गई थी । दरअसल , नेताओं के लिए बयानबाजी की सीमा तय करने का मामला 2016 में बुलंदशहर गैंग रेप केस में उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री की बयानबाजी से शुरू हुआ था । उन्होंने जुलाई 2016 के बुलंदशहर गैंग रेप को राजनीतिक साजिश कह दिया था । इसके बाद ही यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था । साथियों बात अगर हम एक असहमत माननीय जज के विचारों की करें तो , जस्टिस बीबी नागरथाना ने असहमति जताते हुए कहा कि एक मंत्री द्वारा आधिकारिक रूप से दिए गए बयान के लिए सरकार जिम्मेदार है । एक मंत्री दो क्षमताओं में बयान दे सकता है । पहला अपनी व्यक्तिगत क्षमता में दूसरा अपनी आधिकारिक क्षमता में और सरकार के एक प्रतिनिधि के रूप में अगर कोई बवान अपमानजनक है , और न केवल व्यक्तिगत विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं बल्कि व्यक्तिगत मंत्री देते हैं , लेकिन सरकार के विचारों को भी शामिल करते हैं , तो ऐसे बयानों को विशेष रूप से सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए सरकार को ही जिम्मेदार ठहराया जा सकता है । दूसरे शब्दों में,अगर अलग – अलग मंत्री द्वारा दिए गए बयानों का न केवल बयानों में समर्थन किया जाता है , लेकिन सरकार के रुख को भी प्रतिबिंबित करते हैं , इस तरह के बयान को सरकार के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है । हालांकि , अगर इस तरह के बयान किसी एक मंत्री की अलग – अलग राय और सरकार के विचारों के अनुरूप नहीं है , तो वे व्यक्तिगत रूप से मंत्री के लिए जिम्मेदार होंगे और सरकार के लिए नहीं सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ को फैसला करना था कि क्या अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर किसी भी आपराधिक मामले में सरकार के मंत्री या जनप्रतिनिधि कानून के उलट कुछ भी बयान दे सकते हैं ? 2017 में सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश की तीन सदस्यीय पीठ ने मामले को संविधान पीठ के पास भेजने की सिफारिश की थी ।

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