BY: प्रोफ़ेसर चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध
जय गणेश गणाधिपति प्रभु
सिध्दिदायक गजवदन
विघ्ननाशक कष्टहारी हे परम आनन्दधन
दुखो से संतप्त अतिशय त्रस्त यह संसार है
धरा पर नित बढ़ रहा दुखदायियो का भार है
हर हृदय में वेदना आतंक का अंधियार है
उठ गया दुनिया से जैसे मन का ममता प्यार है
दीजिये सद्बुध्दि का वरदान हे करूणा अयन
जय गणेश गणाधिपति प्रभु
सिध्दिदायक गजवदन