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प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध .. उम्र के दसवें दशक में भी , जैसे गीता को जीते हुये सक्रिय साहित्यकार

Niharika Shrivastava by Niharika Shrivastava
October 26, 2020
in सम्पादकीय
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध .. उम्र के दसवें दशक में भी , जैसे गीता को जीते हुये सक्रिय साहित्यकार
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पुस्तक चर्चा: सकारात्मकता से संकल्प विजय का

BY: विवेक रंजन श्रीवास्तव 

वे उम्र के दशवें दशक में हैं , परमात्मा की कृपा, उनका स्वयं का नियमित रहन सहन , खान पान , व्यायाम , लेखन , नियमित टहलना , पठन , स्वाध्याय, संयम  का ही परिणाम है कि वे आज भी निरंतर सक्रिय जीवन व्यतीत कर रहे हैं . भगवत गीता के उनके द्वारा किये गये हिन्दी काव्य अनुवाद का पांचवा संस्करण प्रकाशित हुआ है . महाकवि कालिदास के रघुवंश , मेघदूत का भी उन्होने हिन्दी में श्लोकशः अनुवाद कर इन अप्रतिम ग्रंथो को संस्कृत न जानने वाले पाठको के लिये भी काव्य के उसी सौंदर्य के संग सुलभ कर दिया है .वे  एक  सिद्धांतो  के पक्के , अपनी धुन में रमें हुये सहज सरल व्यक्ति हैं . 

जन्म … मण्डला में गौड़ राजाओ के दीवानी कार्यो हेतु मूलतः मुगलसराय के पास सिकंदरसराय से मण्डला आये हुये कायस्थ परिवार में प्रो.चित्र भूषण श्रीवास्तव “विदग्ध” का जन्म सन  १९२७ में हुआ था . उन्होंने विकास के बड़े लम्बे आयाम देखे हैं ,मण्डला में ही नेरो गेज से ब्राड गेज  रेल्वे के वे साक्षी हैं . आज वे  दुबई , श्रीलंका , आदि हवाई विदेश यात्रायें कर रहे हैं और कहां उन्होने लालटेन की रोशनी में पढ़ा ,पढ़ाया है . स्वतंत्रता के आंदोलन में छात्र जीवन में सहभागिता की है . मण्डला के अमर शहीद उदय चंद जैन उनकी ही डेस्क पर बैठने वाले उनके सहपाठी थे ..

व्यवसाय … वे केंद्रीय विद्यालय क्रमांक १ जबलपुर के संस्थापक प्राचार्य रहे . शिक्षा विभाग में दीर्घ कालीन सेवाये देते हुये प्रांतीय शासकीय शिक्षण महाविद्यालय जबलपुर से प्राध्यापक के रूप में  सेवानिवृत  हुये हैं . उस पुराने जमाने में उनका विवाह लखनऊ में हुआ था . इतनी दूर शादी, मण्डला जैसे पिछड़े क्षेत्र में  सहज बात नही थी .  फिर पत्नी ने नौकरी भी की .  यह तो मुहल्ले के लिये अजूबा ही रहा होगा .

साहित्य सेवा …  १९४८ में सरस्वती पत्रिका में उन की पहली रचना प्रकाशित हुई . निरंतर पत्र पत्रिकाओ में कविताये, लेख , छपते रहे हैं .आकाशवाणी व दूरदर्शन से अनेक प्रसारण होते रहे हैं . दूरदर्शन भोपाल ने “एक व्यक्तित्व ऐसा ” नाम से उन पर फ़िल्म बनाई है । दिल्ली से ट्रू मीडिया ने उन पर केंद्रित विशेषांक प्रकाशित किया है ।

पुस्तकें … ईशाराधन ,वतन को नमन ,अनुगुंजन ,नैतिक कथाये ,आदर्श भाषण कला ,कर्म भूमि के लिये बलिदान ,जनसेवा , अंधा और लंगड़ा , मुक्तक संग्रह ,अंतर्ध्वनि,  समाजोपयोगी उत्पादक कार्य , शिक्षण में नवाचार  मानस के मोती , अनुभूति , रघुवंश हिंदी भावानुवाद , भगवत गीता हिंदी काव्य अनुवाद, मेघदूतम , शब्दधारा आदि साहित्यिक व शैक्षिक ४० से ज्यादा किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं .

वे संस्कृत से हिन्दी भावानुवाद के मर्मज्ञ हैं . महाकवि कालिदास के अमर प्रेम काव्य मेघदूत के सारे श्लोक उन्होने यथा भाव छंद बद्ध हिन्दी कविता में रचे हैं जो पुस्तक रूप में प्रकाशित हैं . इसी तरह कालिदास कृत रघुवंशम  के समस्त १९०० श्लोको का श्रमसाध्य छंद बद्ध हिन्दी अनुवाद भी उन्होने किया है यह भी पुस्तक रूप में सुलभ है . देशबन्धु समाचार पत्र ने इसे तथा उनके द्वारा अनुवादित भगवत गीता को धारावाहिक रूप से प्रकाशित भी किया है .

वे बाल साहित्य व राष्ट्रीय भावधारा की कविताओ के साथ ही भक्ति गीतों , समसामयिक घटनाओ पर त्वरित कविताओ और हिन्दी गजलो के लिये भी पहचाने जाते हैं .

उनकी अनेकानेक कविताओ में से दो एक यहाँ उधृत हैं ….

बाल साहित्य …..
भारत हमें है प्यारा यह देश है हमारा
हम इसकी करें सेवा इसका हमें सहारा
इसकी जमीन मां की गोदी सी है सुहानी
फल अन्न इसके मीठे अमृत सा इसका पानी
इस भूमि पर ही कभी राम कृष्ण आए
गुणगान जिनके अब तक जाते सदा सुनाएं
यहां देवगिरी हिमालय सरिता पुनीत गंगा
इनकी यशों की गाथा गाता है नित तिरंगा

या
राष्ट्रीय भाव धारा की रचना ….
हिमगिरि शोभित सागर सेवित
सुखदा गुणमय गरिमा वाली
सस्य श्यामला शांति दायिनी
परम विशाला वैभवशाली ॥
प्राकृत पावन पुण्य पुरातन
सतत नीती नय नेह प्रकाशिनि
सत्य बन्धुता समता करुणा
स्वतंत्रता शुचिता अभिलाषिणि ॥
ज्ञानमयी युग बोध दायिनी
बहु भाषा भाषिणि सन्मानी
हम सबकी माँ भारत माता

भक्ति रचनायें …

दर्शन के लिये , पूजन के लिये,  जगदम्बा के दरबार चलो
मन में श्रद्धा विश्वास लिये , मां का करते जयकार चलो !! जय जगदम्बे , जयजगदम्बे !!
है डगर कठिन देवालय की , माँ पथ मेरा आसान करो
मैं द्वार दिवाले तक पहुँचू ,इतना मुझ पर एहसान करो !! जय जगदम्बे , जयजगदम्बे !!
उँचे पर्वत पर है मंदिर , अनुपम है छटा, छबि न्यारी है
नयनो से बरसती है करुणा , कहता हर एक पुजारी है !! जय जगदम्बे , जयजगदम्बे !!
मां ज्योति तुम्हारे कलशों की , जीवन में जगाती उजियाला
हरयारी हरे जवारों की , करती शीतल दुख की ज्वाला  !! जय जगदम्बे , जयजगदम्बे !!
जगजननि माँ शेरावाली ! महिमा अनमोल तुम्हारी है
जिस पर करती तुम कृपा वही , जग में सुख का अधिकारी है !! जय जगदम्बे , जयजगदम्बे !!
तुम सबको देती हो खुशियाँ , सब भक्त यही बतलाते हैं
जो निर्मल मन से जाते हैं वे झोली भर वापस आते है !! जय जगदम्बे , जयजगदम्बे !!

या
शुभवस्त्रे हंस वाहिनी वीण वादिनी शारदे ,
डूबते संसार को अवलंब दे आधार दे !
हो रही घर घर निरंतर आज धन की साधना ,
स्वार्थ के चंदन अगरु से अर्चना आराधना
आत्म वंचित मन सशंकित विश्व बहुत उदास है,
चेतना जग की जगा मां वीण की झंकार दे !
सुविकसित विज्ञान ने तो की सुखों की सर्जना
बंद हो पाई न अब भी पर बमों की गर्जना
रक्त रंजित धरा पर फैला धुआं और और ध्वंस है
बचा मृग मारिचिका से , मनुज को माँ प्यार दे
थक गया चल विश्व , झुलसाती तपन की धूप में
हृदय को माँ ! पूर्णिमा सा , मधु भरा संसार दे

उनके हिन्दी गीत देखें …
शारदी चांदनी सा धुला मन,  जब पपीहा सा तुमको पुकारे
सावनी घन घटा से उमड़ते , स्वप्न से तुम यहां  चले आना  
प्राण के तार खुद झनझना के , याद की वीथिका खोल देंगे
नैन मन की मिली योजना से,  चित्र सब कुछ स्वतः बोल देंगे
बात करते स्वतः बावरे से , प्रेम रंग में रंगे सांवरे से
वीण से गीत गुनगुनाते , स्वप्न से तुम यहां  चले आना

हिन्दी गजल …

तुम्हारे संग जिये जो दिन भुलाये जा नहीं सकते
मगर मुश्किल तो ये है फिर से पाये जा नहीं सकते
कदम हर एक चलके साथ तुमने जो निभाया था
दुखी मन से किसी को वे बताये जा नहीं सकते
चले हम राह में जब धूप थी तपती दोपहरी थी
सहे लू के थपेडे जो गिनाये जा नही सकते
लगाये ध्यान पढते पुस्तकें रातें बिताई गई
दुखद किस्से परिश्रम के सुनाये जा नहीं सकते
तुम्हारे नेह के व्यवहार फिर फिर याद आते है
दुखाकुल मन से जो सबको बताये जा नही सकते
बसी हैं कई प्रंसगो की सजल यादें नयन मन में
चटक हैं चित्र ऐसे जो मिटाये जा नही सकते

पर्यावरण ,साफ सफाई अभियान ,  शिक्षा , रानी दुर्गावती , महाराणा प्रताप , सरदार पटेल , माँ नर्मदा , लगभग हर विषय पर उन्होने बड़ी प्रभावी गीत रचनायें की है .

गद्य पर भी उनका समान अधिकार है . उन्होने विविध विषयों पर ललित निबंध , चिंतन , मानस विषयक , स्त्री विमर्श व शैक्षिक शोध आलेख खूब लिखे हैं .
उनके दो एक आलेखों के उधृत अंश देखिये …
” धन सदा  सुखदायी ही नहीं  होता . अनुचित साधनों से धन की प्राप्ति  नये संकट ले आती है। सुख सचमुच में धन प्राप्ति के लिए अंधी दौड़ में नहीं, प्रेम के निश्छल आदान-प्रदान में है। सहयोग और ईमानदारी में सुख के बीज छिपे होते हैं। परन्तु इस सचाई को भुलाकर नवीनता की चका-चौंध में जो गलत प्रयत्न धन पाने के लिए अपनाएँ जा रहे हैं उन्होंने जीवन की कठिनाइयाँ बढ़ा दी है। भारतीय संस्कृति में तप और त्याग का धार्मिक महत्व रहा है। इसी पवित्र भावना ने समाज को बाँधे रखा है और मन को बेलगाम होकर दौडऩे से रोके रखा है। किन्तु आज अन्य सभ्यताओं की देखा देखी भारतीय संस्कारों को तिलांजलि देकर लोगों ने बाह्य आकर्षणों में सुख की साध पाल ली है इससे ही समाज का नैतिक पतन हो रहा है .यदि हमें अपने देश को फिर से नैतिक रूप से स्वस्थ और समृद्ध बनाना है तो भारत भूमि की ही जलवायु की उपासना करनी होगी और युग की नवीनता को अपने कार्यक्रमों में उचित रूप से समायोजित करना होगा । बिना सदाचरण, निष्ठा और नैतिकता को अपनायें जीवन में वास्तविक सुख-शांति और समृद्धि असंभव है।”

या
” जिसमें आत्मविश्वास प्रबल है उसकी विजय प्राय: सुनिश्चित होती है। कोई भी कार्य छोटा हो या बड़ा, सरल हो या कठिन काम करने वाले के मन में सफलता पाने का आत्मविश्वास  होना बहुत जरूरी है। विश्व इतिहास के पन्ने, आत्मविश्वासी की विजयों से भरे पड़े हैं। क्षेत्र राजनीति का हो या विज्ञान का, व्यक्ति के आत्मविश्वास ने समस्याओं का सदा समाधान कराया है। चन्द्रगुप्त के आत्मविश्वास ने भारत में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। यूरोप में नेपोलियन बोनापार्ट की हर जीत का रहस्य उस का आत्मविश्वास ही था। विज्ञान के क्षेत्र में किसी भी नये आविष्कार के लिये वैज्ञानिकों की लगन, परिश्रम और सूझबूझ के साथ ही उनके आत्मविश्वास और धैर्य के बल पर ही सफलता प्राप्त होती है। आत्मविश्वासी वीरों ने ही हिमालय की सर्वोच्च ऊंची चोटी गौरीशंकर जिसे एवरेस्ट भी कहा जाता है तक पहुंचकर अपने अदम्य साहस का परिचय दिया है। आत्मविश्वास व्यक्ति को निडर, उत्साही और धैर्यवान बनाता है।

या
“नैतिक, चरित्रवान, कर्मनिष्ठ समाज तैयार करने के लिये सही शिक्षा की आवश्यकता है . शालाओं और परिवार दोनो की बच्चो में सही गुणो के विकास की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है . वर्तमान में जो आर्थिक तथा सामाजिक परिस्थितियां हैं वे इस दिशा में परिवर्तन चाहती हैं . सबके सही व्यक्तित्व के निर्माण की आवश्यकता है . राष्ट्रीय चरित्र में इसी से स्थाई सुधार संभव होगा . आत्म अनुशासन ही समाज में स्थाई सुख और शांति का श्रोत है . समाज में नैतिकता का सम्मान अतिआवश्यक है , और यह सब ऐसे बाल साहित्य की जरूरत प्रतिपादित करता है जो शिशु शिक्षा से प्रारंभ व्यक्तित्व निर्माण , किशोर , युवा , व इस तरह एक आत्म अनुशासित पीढ़ी का विकास कर सके .”

वे अपने परिवेश में सदैव साहित्यिक वातावरण सृजित करते रहे हैं , जिस भी संस्थान में रहे वहां शैक्षणिक पत्रिका प्रकाशन ,संपादन व  साहित्यिक आयोजन करवाते रहे . उन्होने संस्कृत के व हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिये राष्ट्र भाषा प्रचार समिति वर्धा , तथा बुल्ढ़ाना संस्कृत साहित्य मण्डल के साथ बहुत कार्य किये . अनेक पुस्तकालयो में लाखो की किताबें वे दान दे चुके हैं .

गुप्त दान की अभिरुचि …प्रधानमंत्री सहायता कोष , उदयपुर के नारायण सेवा , तारांशु व अन्य संस्थानो में घर के किसी सदस्य की किसी उपलब्धि , जन्मदिन आदि मौको पर नियमित चुपचाप दान राशि भेजने में उन्हें अच्छा लगता है . वे आडम्बर से दूर सरस्वती के मौन साधक कर्मवीर हैं .  वे गीता को जी रहे हैं .
 

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