संगीत निर्देशक महितोष मैठाणी
संपादक अशोक खुराना , बदायुं
चर्चाकार: विवेक रंजन श्रीवास्तव , शिला कुंज , नयागांव जबलपुर ४८२००८
श्री अशोक खुराना जी मूलतः व्यवसायी हैं . वे बदायुं में रहते हैं . उनके साहित्य अनुराग से देश भर के साहित्य प्रेमी सुपरिचित हैं . अशोक जी ने स्वस्फूर्त शामियाना शीर्षक से ३ आकर्षक किताबें , “आंसू” , एवं “एक तू ही” शीर्षक से पुस्तकें संपादित कर प्रकाशित की हैं , जिनमें देश के ख्याति लब्ध कवियो की हजारों सरस रचनायें संग्रहित हैं . अशोक जी ने ये पुस्तके स्वयं अपने व्यय पर प्रकाशित व वितरित की हैं . उन्हें अनेकानेक अलंकरण व समाज सेवा हेतु प्रतिष्ठित सम्मान प्रदान कर संस्थायें स्वयं गौरवांवित हुई हैं .
कहा जाता है कि संगीत की स्वर लहरियां शब्दो के भाव को हृदय में उतार देती हैं . जहां पुस्तक में प्रकाशित रचना पाठक चाहती है , वहीं गीत की पहुंच कानो के जरिये अधिक व्यापक और प्रभावी होती है . वर्तमान समय पठनीयता के अभाव का है हर शख्स समयाभाव से जूझता स्वयं की भागदौड़ में व्यस्त है . ऐसे समय में अशोक जी ने एक सर्वथा नई , प्रशंसनीय परियोजना को सफलता पूर्वक मूर्त रूप दिया है . पुस्तक “एक तू ही” की सारी रचनायें ईश्वर की एकात्म सत्ता को समर्पित बड़े भावना प्रधान मर्म स्पर्शी गीत हैं .अशोक जी ने इसमें से आठ मधुर गायन योग्य छंद बद्ध गीतो का चयन किया ,और इन्हें टी सिरीज जैसे सुप्रतिष्ठित म्युजिक संस्थान से म्युजिक एल्बम एक तू ही के रूप में प्रस्तुत किया गया है.
इस एल्बम के संगीत निर्देशक सु प्रसिद्ध संगीतकार महितोष मैठाणी हैं .पहला ही गीत तेरी निगरानी में है सारी दुनियां स्वयं अशोक खुराना जी का ही है , जिसे मधुर स्वर देकर स्मिता अधिकारी ने श्रोता के दिलों में उतार दिया है . एल्बम का अगला गीत केवल खुराना जी का है , जिसके बोल हैं ” जिसकी सूरत है न कुछ आकार है ” , परमात्मा को समर्पित इस निर्गुण भजन को भी स्मिता अधिकारी ने ही गाया है . तीसरा गीत अमर खरबंदा का है , जिसे महितोष मैठाणी ने स्वयं स्वर दिया है , इस गीत के बोल हैं ” बस्ती बस्ती राह दिखाने वाला तू ” . एल्बम का चौथा गीत गूफी जी ने गाया है , जिसे राम प्रसाद बेखुद ने लिखा है . गीत के बोल हैं ” तू ही काशी में तू ही काबे में ” .
अगला निर्गुण भजन “उम्मीद के बाग लगाने वाला तू” है जिसे स्मिता अधिकारी ने गाया है , गीत के रचनाकार हैं दानिश भारती . एल्बम का छठवां निर्गुण भजन “अपनी रहमत का तलबगार बना दे “मुदासिर अली ने गाया है , गीत को लिखा है मुनीश चंद्र सक्सेना ने . सातवां गीत प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध जी का है जिसके बोल ” हे दीन बंधु दयालु प्रभु ” को कर्ण प्रिय स्वर पूजा माल्या ने दिया है . एल्बम का अंतिम गीत ” सुख में हंस कर दुख में रोकर ” रमेश पाण्डे जी ने लिखा है जिसे मुदासिर अली ने गाया है .
गीतो के बोल से ही एल्बम के मूल भाव निर्गुण परमात्मा के प्रति आभार , व प्रकृति में भगवान के निर्गुण स्वरूप के दर्शन स्पष्ट हैं . आज जब लोगों का अंतरमन भौतिकता के कोलाहल से व्याकुल है तब इस तरह के गीत , संगीत से परम शांति सुख का अनुभव होता है . ऐसे ढ़ेरो गीतो का संग्रह अशोक जी के पास सुलभ है . आवश्यकता है कि जनमानस तक इस तरह की और भी रचनायें गीत संगीत , व वीडियो के आधुनिक तकनीक से ज्यादा से ज्यादा पहुंचाई जाये .
कुल मिलाकर यह एल्बम बहुत ही उम्दा है , जरूर सुने और फारवर्ड करें . उल्लेखनीय है कि इसके गीत मोबाईल की कालर ट्यून के रूप में भी सुलभ हैँ . यू ट्यूब पर गीत के नीचे ही कालर ट्यून के लिंक दिये गये हैं.