BY: विवेक रंजन श्रीवास्तव
यदि कालिदास के समय में मोबाइल होता तो संभवतः मेघदूत की रचना ही न होती , क्योकि प्रत्यक्षतः मेघदूत एक नवविवाहित प्रेमी यक्ष की अपनी प्रिया से विरह की व्याकुल मनोदशा में उससे मिलने की उत्कंठा का वर्णन है . एक वर्ष के विरह शाप के शेष चार माह वर्षा ॠतु के हैं . विरही यक्ष मध्य भारत के रामगिरी पर्वत से अपनी प्रेमिका को, जो उत्तर भारत में हिमालय पर स्थित अलकापुरी में है , आकाश में उमड़ आये बादलो के माध्यम से प्रेम संदेश भेजता है – अपरोक्ष रुप से रचना का भाषा सौंदर्य , मेघो को अपनी प्रेमिका का पता बताने के माध्यम से तत्कालीन भारत का भौगिलिक व राजनैतिक वर्णन , निर्जीव मेघो को सप्राण संदेश वाहक बनाने की आध्यात्मिकता , आदि विशेषताओ ने मेघदूत को अमर विश्वकाव्य बना दिया है . मेघदूत खण्ड काव्य है . जिसके २ खण्ड है – पूर्वमेघ में ६७ श्लोक हैं जिनमें कवि ने मेघ को यात्रा मार्ग बतलाकर प्रकृति का मानवीकरण करते हुये अद्भुत कल्पना शक्ति का परिचय दिया है .
उत्तरमेघ में ५४ श्लोक हैं , जिनमें विरह प्रेम की अवस्था का भावुक चित्रण है
लौकिक दृष्टि से हर पति पत्नी में कुछ समय के लिये विरह बहुत सहज घटना है .
“तेरी दो टकियो की नौकरी मेरा लाखो का सावन जाये” आज भी गाया जाता है , किन्तु कालिदास के समय में यह विरह अभिव्यक्ति यक्ष के माध्यम से व्यक्त की जा रही थी .. यक्षिणि शायद इतनी मुखर नही थी, वह तो अवगुंठित अल्कापुरी में अपने प्रिय के इंतजार में ही है . इसी सामान्य प्रेमी जोड़े के विरह की घटना को विशिष्ट बनाने की क्षमता मेघदूत की विशिष्टता है .
इस अद्भुत कल्पना को काव्य में सजाया था महाकवि कालिदास ने , उसे उसी मधुरता से काव्य भाव अनुवाद किया है प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ने।
श्रीमद्भगवत्गीता विश्व ग्रंथ के रूप में मान्यता अर्जित कर चुका है , गीता में भगवान कृष्ण के अर्जुन को रणभूमि में दिये गये उपदेश हैं , जिनसे धर्म , जाति से परे प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की चुनौतियो से सामना करने की प्रेरणा मिलती है . परमात्मा को समझने का अवसर मिलता है . जीवन “मैनेजमेंट” की शिक्षा मिलती है .
महाकवि कालिदास की विश्व प्रसिद्ध कृतियों में मेघदूतम् , रघुवंशम् , कुमारसंभवम् , अभिग्यानशाकुन्तलम् आदि ग्रंथ सुप्रसिद्ध हैं । इस विश्व धरोहर पर संस्कृत न जानने वाले पाठको की भी गहन रुचि है !
ऐसे पाठक अनुवाद पढ़कर ही इन महान ग्रंथों को समझने का प्रयत्न करते हैं ! किन्तु अनुवाद की सीमायें होती हैं ! अनुवाद में काव्य का शिल्पगत् सौन्दर्य नष्ट हो जाता है ! पर यदि काव्यानुवाद श्लोकशः भावानुवाद हो तो वह आनंद यथावत बना रहता है , और यही कर दिखाया है प्रो सी बी श्रीवास्तव ने .
नयी पीढ़ी संस्कृत नही पढ़ रही है , और ये सारे विश्व ग्रंथ मूल संस्कृत काव्य में हैं , अतः ऐसे महान दिशा दर्शक ग्रंथो के रसामृत से आज की पीढ़ी वंचित है .
प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ने श्रीमद्भगवत गीता , रघुवंशम्, मेघदूतम् जैसी महान रचनाओ का श्लोकशः हिन्दी भाव पद्यानुवाद का महान कार्य करके काव्य की उसी मूल भावना तथा सौंदर्य के आनंद के साथ हमारे सांस्कृतिक ज्ञान ,व प्राचीन साहित्य को हिन्दी जानने वाले पाठको के लिये सुलभ करा दिया है . यह कार्य 94 वर्षीय प्रो. श्रीवास्तव के सुदीर्घ संस्कृत , हिन्दी तथा काव्यगत अनुभव व ज्ञान से ही संभव हो पाया है . प्रो श्रीवास्तव इसे ईश्वरीय प्रेरणा , व कृपा बताते हैं .
मण्डला के प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव “विदग्ध” जी ने महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम् के समस्त १२१ मूल संस्कृत श्लोकों का एवं रघुवंश के सभी १९ सर्गों के लगभग १८०० मूल संस्कृत श्लोकों का तथा श्रीमद्भगवत गीता के समस्त १८ अध्यायो के सारे श्लोको का श्लोकशः हिन्दी गेय छंद बद्ध भाव पद्यानुवाद कर हिन्दी के पाठको के लिये अद्वितीय कार्य किया है।
उल्लेखनीय है कि प्रो श्रीवास्तव की शिक्षा , साहित्य , गजलों ,कविताओ की 40 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं व सराहना अर्जित कर चुकी हैं .
शासन हर वर्ष कालिदास समारोह , तथा संस्कृत के नाम पर करोंडों रूपये व्यय कर रहा है ! जन हित में इन अप्रतिम अनुदित कृतियों को आम आदमी के लिये संस्कृत में रुचि पैदा करने हेतु इन पुस्तकों को इलेक्ट्रानिक माध्यमों से प्रस्तुत किया जाना चाहिये , जिससे यह विश्व स्तरीय कार्य समुचित सराहना पा सकेगा !
प्रो श्रीवास्तव ने अपने ब्लाग http://vikasprakashan.blogspot.com
पर अनुवाद के कुछ अंश सुलभ करवाये हैं .
ई बुक्स के इस समय में भी प्रकाशित पुस्तकों को पढ़ने का आनंद अलग ही है ,उन्होने बताया कि इन ग्रंथो को पुस्तकाकार प्रकाशन कर भी सुलभ किया गया है।
उनका पता है:
प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव
A १ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर . म.प्र. भारत पिन ४८२००८