हिन्दी पद्यानुवाद: प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध
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(ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण)
अर्जुन उवाच
ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन ।
तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव ॥
अर्जुन ने कहा-
अगर बुद्धि है कर्म से अधिक श्रेष्ठ भगवान
तो फिर मुझको कर्म में क्यों फसाँ रहे श्रीमान।।1।।
भावार्थ : अर्जुन बोले- हे जनार्दन! यदि आपको कर्म की अपेक्षा ज्ञान श्रेष्ठ मान्य है तो फिर हे केशव! मुझे भयंकर कर्म में क्यों लगाते हैं?॥1॥
- If it be thought by Thee that knowledge is superior to action, O Krishna, why then, O
Kesava, dost Thou ask me to engage in this terrible action?
व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे ।
तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम् ॥
उलझे उलझे वाक्य में मोहित सी मम बुद्धि
निश्चित एक बताये , हो जिससे मन की शुद्धि।।2।।
भावार्थ : आप मिले हुए-से वचनों से मेरी बुद्धि को मानो मोहित कर रहे हैं। इसलिए उस एक बात को निश्चित करके कहिए जिससे मैं कल्याण को प्राप्त हो जाऊँ॥2॥॥
श्रीभगवानुवाच
- With these apparently perplexing words Thou confusest, as it were, my understanding;
therefore, tell me that one way for certain by which I may attain bliss.