हिन्दी पद्यानुवाद: प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध
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यदि उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम् ।
संकरस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः ॥
मेरे कर्म न करने से यह जग विनष्ट हो जायेगा
मुझे दोष देगी यह दुनियाँ,सिर्फ बुरा कहलाउॅगा।।24।।
भावार्थ : इसलिए यदि मैं कर्म न करूँ तो ये सब मनुष्य नष्ट-भ्रष्ट हो जाएँ और मैं संकरता का करने वाला होऊँ तथा इस समस्त प्रजा को नष्ट करने वाला बनूँ॥24॥
- These worlds would perish if I did not perform action; I should be the author of
confusion of castes and destruction of these beings.
( अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा )
सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत ।
कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीर्षुर्लोकसंग्रहम् ॥
हे भारत! आसक्त भाव से ज्यों अज्ञानी करते है
वैसे ही आसक्ति छोडकर ज्ञानी कर्म बरतते है।।25।।
भावार्थ : हे भारत! कर्म में आसक्त हुए अज्ञानीजन जिस प्रकार कर्म करते हैं, आसक्तिरहित विद्वान भी लोकसंग्रह करना चाहता हुआ उसी प्रकार कर्म करे॥25॥
- As the ignorant men act from attachment to action, O Bharata (Arjuna), so should the
wise act without attachment, wishing the welfare of the world!