BY: रवि वर्मा

ये साल था
या बवाल था
या ज़िन्दगी के लिए
इक सवाल था
या काल का कोई जाल था
क्यूं आया था यह
और कैसे जा रहा?
जाते जाते भी मन दुखा रहा ।
वो गुज़र गया
पर कैसे गुज़रा
प्रश्न थे अनगिनत
पर जवाब शून्यकाल था
आंखों में आंसू और
ललाट पर चिंता की सलवटों वाला
ये अजब इक साल था
साल था, या मलाल था
दर्द बेमिसाल था
यादों से मिटा देना इसे
कि यह भी कोई साल था.